🌿 जब जुड़ाव बोझ बन जाए और अपने ही पराए लगने लगें, तब शायरी ही सहारा बनती है...
रिश्ते हमारे जीवन की सबसे खूबसूरत लेकिन सबसे नाज़ुक डोर होते हैं। जब ये डोर कसकर बंधी होती है, तो जीवन मुस्कान बन जाता है, लेकिन जब ये टूटती है — तो सिर्फ खामोशी, तन्हाई और दर्द बचता है।
हर इंसान कभी न कभी ऐसे मोड़ से गुजरता है, जहां शब्द नहीं, बस एहसास बोलते हैं। और इन एहसासों को बयां करने का सबसे सच्चा ज़रिया होती है दर्द भरी शायरी।
खामोशियों में भी एक साज़ होता है,
टूटे रिश्तों का अपना अंदाज़ होता है।
टूटे हुए रिश्तों की खामोशी कुछ कहती है,
हर मुस्कुराहट के पीछे एक तड़प छुपी रहती है।
जब शब्द थक जाएं और आंसू बोलने लगें,
समझो रिश्ते अब खामोशी में डूबने लगें।💔
रिश्ते जब टूटते हैं, शोर नहीं होता,
बस अंदर ही अंदर सब कुछ खामोश हो जाता है।
वो कहती रही — सब ठीक है हमारे बीच,
पर उसकी आँखों की खामोशी कुछ और कहती रही।
जिसे सबसे ज़्यादा चाहा,
वही आज सबसे ज़्यादा खामोश कर गया।
रिश्ते जब बोझ लगने लगें,
तो खामोशी ही सबसे आसान जवाब होती है।
ना शिकवा किया, ना शिकायत की,
बस टूटकर भी खामोशी से निभाते रहे।💔
कभी वो बातों में सब कुछ कह जाती थी,
आज खामोश है… और मैं समझ नहीं पाता।
हर रिश्ते की एक उम्र होती है शायद,
जो खामोशी से गुजर जाए, वो ज़िंदा नहीं रहता।
ना कोई अलविदा, ना कोई तकरार हुई,
बस खामोशी से एक कहानी ख़त्म हो गई।
टूटे रिश्तों की आवाज़ नहीं होती,
ये दर्द तो बस आँखों से बहता है।
टूटे रिश्तों का कोई अल्फाज़ नहीं होता,
बस एक सन्नाटा होता है जो सब कुछ कह जाता है।
वो खामोश रहकर भी सब कुछ कह गई,
मैं बोलकर भी कुछ नहीं समझा सका।
हमने जिन रिश्तों को जान से चाहा,
वो ही खामोशी से हमें मार गए।
जिनसे कभी हर बात साझा की थी,
आज उन्हीं से खामोशी की दूरी है।💔
ना कोई शिकवा, ना कोई शिकायत,
बस एक खामोश रिश्ता और बेजान सी चाहत।
टूटे रिश्ते भी कभी-कभी जिंदा रहते हैं,
बस वो खामोशी से हर रोज़ मरते हैं।
जिस रिश्ते में अब बातें नहीं होतीं,
वो अक्सर खामोशी में दम तोड़ देता है।
हमने रिश्ते में सब कुछ खो दिया,
अब बस खामोशी ही साथ रह गई।
जब किसी का साथ छूटता है,💔
तो सबसे पहले खामोशी घर कर जाती है।
एक वक़्त था जब वो बिना कहे समझ जाते थे,
अब हम चिल्लाकर भी उन्हें खामोश पाते हैं।
खामोश चेहरों के पीछे,
टूटे रिश्तों की चीखें होती हैं।
टूट कर भी मुस्कुराना आसान नहीं होता,
खामोश रहना तो मजबूरी बन जाती है।
कभी जो दिल के करीब थे,
आज वही खामोशी के पीछे छुपे हैं।
रिश्तों में जब खामोशी आ जाती है,
तो समझो प्यार दम तोड़ चुका होता है।
खामोश रिश्ते सबसे ज़्यादा तड़पाते हैं,
क्योंकि वो टूटते नहीं — बस घुटते हैं।💔
अब कोई शिकवा नहीं, कोई गिला नहीं,
तेरी खामोशी ने सब कुछ साफ़ कर दिया।
हम बोले भी तो क्या बोले,
जब सामने वाला खामोशी ओढ़ ले।
सांसें चलती रहीं, पर रिश्ता कब का मर गया,
उसकी खामोशी ने हमसे सब कुछ छीन लिया।
कभी रिश्ते भी थक जाते हैं निभते-निभते,
हमने तो दिल से चाहा, उन्होंने मजबूरी समझा।
दिल से निभाया हर रिश्ता हमने,
पर हर किसी को वक़्त की पाबंदी लगी।
जब रिश्ते बोझ लगने लगें,
तो समझो उसमें प्यार नहीं, बस जिम्मेदारी बची है।
जिसे हम अपने दिल का सुकून समझते थे,💔
वो अब थकान का सबसे बड़ा कारण बन गया है।
एक वक़्त था जब बातें दिल से होती थीं,
अब हर बात में हिसाब और तकरार होती है।
कुछ रिश्ते निभते-निभते टूट जाते हैं,
क्योंकि दोनों थक जाते हैं एकतरफा कोशिशों से।
अब वो रिश्ता बोझ सा लगता है,
जिसे कभी सांसों की तरह चाहा था।
रिश्ते जब आदत से ज़्यादा ज़िम्मेदारी बन जाएं,
तो दिल खुद-ब-खुद दूरी बना लेता है।
रोज़ की शिकायतें, रोज़ की थकान,
अब ये रिश्ता सुकून नहीं, संघर्ष बन गया है।
हमने चाहा कि रिश्ता जिए,💔
पर उन्होंने समझा कि ये निभाना पड़ता है।
जब दिल से दिल की बात न हो,
तो रिश्ता बोझ ही बन जाता है, साथ नहीं।
जिसे कभी खुद से बढ़कर माना था,
आज उसी का साथ बोझ लगने लगा है।
हमने तो चाहा था उम्रभर साथ निभाना,
पर अब हर लम्हा सवाल सा लगने लगा है।
दिल अब थक गया है रोज़ समझौते करते-करते,
शायद रिश्ता अब वक़्त से भारी हो गया है।💔
एक वक़्त था जब उसकी मुस्कान सुकून देती थी,
अब उसकी मौजूदगी भी बोझ बन गई है।
बिना बोले जो सब समझ लेते थे,
अब हर बात पर सफाई मांगते हैं।
रिश्ते निभाते-निभाते हम खुद को खो बैठे,
और उन्होंने इसे सिर्फ एक जिम्मेदारी समझा।
कभी जो रिश्ता जिंदा रखता था,
अब वो ही धीरे-धीरे मार रहा है।💔
हर बार खुद को समझाया – चलो निभा लेते हैं,
पर कब तक, जब सामने वाले को परवाह ही नहीं?
हम हर दर्द छुपा लेते थे उनके लिए,
पर उन्होंने वो भी बोझ समझ लिया।
रिश्ते अगर दिल से ना निभें,
तो सिर्फ बोझ रह जाते हैं, बंधन नहीं।
कभी जो दिल की आवाज़ थे,
आज वो फर्ज़ की ज़ंजीर लगते हैं।
जिस रिश्ते में सुकून नहीं बचा,
वो निभाया नहीं, ढोया जाता है।
अब ना शिकायत है, ना मोहब्बत बची,💔
सिर्फ एक खामोश समझौता चल रहा है।
कभी साथ रहना आदत थी,
अब दूर रहना राहत है।
रिश्ता निभा रहे हैं बस नाम के लिए,
वरना दिल तो कब का रिश्ता छोड़ चुका है।
अब रिश्ता निभाना एक जिम्मेदारी लगता है,
प्यार कहाँ गया, ये सवाल हर रोज़ सताता है।
ना वो पहले जैसा रहा, ना मैं,💔
अब तो बस नाम का साथ बाकी है।
दिल अब चीखता है — छोड़ दे सब,
पर ज़हन कहता है — निभा ले एक और दिन।
हमने हर रोज़ खुद को खोया इस रिश्ते को बचाने में,
पर उन्होंने कभी सोचा भी नहीं कि हम टूट रहे हैं।
अपनों के चेहरे पे नकाब देखे हैं हमने,
हर मुस्कान के पीछे जहर देखे हैं हमने।
जिसको समझा था अपनी जान से भी प्यारा,
उसी ने किया दिल पे सबसे बड़ा वार सारा।
अपना कह कर जिसने गले लगाया,
उसी ने सबसे पहले धोखा दिया।
खून के रिश्तों ने ही जख्म दिए हैं,💔
गैरों ने तो कम से कम मरहम लगाए हैं।
जब अपने सवाल करने लगें,
समझ लो अब जवाबों की कीमत नहीं रही।
अपनों की भीड़ में खुद को अकेला पाया,
हर रिश्ते में बस मतलब ही नजर आया।
जिसे देखा था सपनों में अपना बनाकर,
उसी ने छोड़ दिया वक्त आने पर ठुकराकर।
जब अपने ही चुप्पी से जला दें,
तब गैरों की बातें भी सुकून लगती हैं।
अपनों की जुबां पर जब जहर चढ़ जाए,💔
तो खामोशी ही सबसे बड़ी दवा बन जाए।
हर बार अपनों की खातिर खुद को झुकाया,
और बदले में सिर्फ ताने और धोखा पाया।
जिनको समझा था अपना साया,
उन्हीं ने दिया हर दर्द नया।
अपनेपन की उम्मीद में जिए थे हम,
अब उसी उम्मीद से डर लगता है।
जिनके लिए हर ग़म हँसकर सहा,
वही आज गैरों के साथ खड़े हैं वहाँ।
जब रिश्ते औपचारिकता बन जाएं,💔
तब अपनों से भी दूरी बेहतर लगने लगे।
जो हर दुआ में माँगे थे कभी,
आज उन्हीं के नाम से आंसू आते हैं अभी।
अपना समझा तो दिल खोल दिया,
उन्होंने दिल तो क्या, भरोसा भी तोड़ दिया।
हर बात पर जो हँसते थे साथ,
आज वही चुप्पी में छुपा बैठे हैं जज़्बात।
अपनों की बेरुखी ने ऐसा असर किया,💔
अब तो अजनबियों से भी डर लगता है।
जब अपने ही पहचान से इनकार कर दें,
तब आइना भी अजनबी लगने लगे।
न जाने क्या कमी रह गई हमारी चाहत में,
जो अपने भी अजनबी बन बैठे एक दिन।
जिनसे उम्मीद थी हर मोड़ पर साथ निभाने की,
वही निकले हमसे पीछा छुड़ाने की।
सबसे ज्यादा दर्द उन्हीं से मिला,
जिनसे सबसे ज्यादा हौसला मिला।
टूटी उम्मीदें अब सवाल बन गई हैं,💔
और जवाब किसी के पास नहीं।
एक झूठ ने सब कुछ छीन लिया,
और सारी उम्मीदों को जमींदोज़ कर दिया।
उम्मीदें टूटने की आवाज़ नहीं होती,
लेकिन असर सारी उम्र रहता है।
दिल को सबसे ज्यादा उसी ने रुलाया,
जिसे देखकर मुस्कुराना सीखा था।
भरोसा बनाकर खेल गए लोग,
और हम हर बार सच समझकर टूटते गए।
टूटी उम्मीदों की राख में अब रोशनी नहीं,
बस अंधेरे ही अंधेरे हैं हर कहीं।
बहुत सम्भाला खुद को, पर टूट ही गया,
जब उम्मीदें बेवफाई की वजह बन गईं।
चाहा था साथ मिलेगा उम्रभर,💔
पर उम्मीद ही सबसे बड़ी भूल निकली।
उम्मीद थी कि वो लौटकर आएंगे,
पर उन्होंने तो नाम लेना भी छोड़ दिया।
जिनसे जुड़ी थी हर ख्वाहिश,
वही आज बेगानों की तरह खामोश हैं।
एक उम्मीद थी जो दिल में बसी थी,
उसी ने सबसे गहरी खाई खुदाई थी।
जब भी उम्मीद की, चोट खाई,
अब तो डर भी उसी से लगने लगी है।
उम्मीद के नाम पर सिर्फ इंतज़ार मिला,💔
और हर पल तन्हा सिला मिला।
सबसे ज्यादा यकीन जिस पर किया,
उसी ने सबसे पहले साथ छोड़ दिया।
अब तो उम्मीद करने से भी डर लगता है,
क्योंकि हर बार दिल बुरी तरह से टूटता है।
टूटी उम्मीदों का बोझ ऐसा है,
जो हर मुस्कान के पीछे आंसुओं का साया है।
उम्मीद थी कि बात करेंगे वो पहले की तरह,
पर उन्होंने तो देखना भी गवारा न समझा।
अब कोई उम्मीद नहीं बची है दिल में,💔
क्योंकि हर उम्मीद ने ज़ख्म ही दिए हैं सिलसिले में।
जब दिल का रिश्ता जिम्मेदारी लगे,
तो समझ लो मोहब्बत थक चुकी है।
निभाते-निभाते थक गए हैं अब,
किसी मोड़ पर खुद से ही बिछड़ गए हैं अब।
वो हर दिन और हर बात अब बोझ सी लगती है,
जो कभी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत चीज़ लगती थी।
जब साथ होते हुए भी अकेलापन लगे,
तब रिश्ता बोझ बन जाता है।
हम जिनसे जुड़े थे रूह से,
उन्हें हम बस एक आदत लगे।
रिश्तों को जब निभाना ज़रूरी लगे,
तब प्यार नहीं, बस औपचारिकता रह जाती है।
जब हँसी भी मजबूरी लगे,💔
समझ लो रिश्ता अब अधूरी लगे।
हर खामोशी कुछ कह रही थी,
हम ही थे जो सुन नहीं पाए।
अब तो सुकून भी तन्हाई में है,
रिश्ता अब बोझ नहीं, सज़ा है।
प्यार करते करते जब थक जाए मन,
तब समझो रिश्ता खत्म नहीं, पर शेष भी नहीं।
अब रिश्ते निभाने में वो सुकून नहीं रहा,
हर पल बस एक बोझ सा एहसास रहा।
जहां कभी दिल लग जाता था,💔
अब वहीं से भाग जाने का मन करता है।
रिश्ते अब साथ नहीं देते,
बस नाम के ही सहारे चलते रहते हैं।
अब बात करने से ज्यादा चुप रहना आसान लगता है,
क्योंकि हर लफ्ज़ एक नई लड़ाई जैसा लगता है।
वो आंखों की चमक, अब सवाल बन चुकी है,
और हर जवाब में दूरी छुपी हुई है।
पहले जहां हँसी थी, अब खामोशी है,💔
और उस खामोशी में दर्द की गूंज भी है।
जब दिल से ज्यादा दिमाग चलाना पड़े,
तब जान लो, रिश्ता अब दिल का नहीं रहा।
अब हर पल साथ रहना थकावट देता है,
जैसे किसी बेगाने के संग सफर हो रहा हो।
हर दिन वही बातें, वही शिकवे,
प्यार कहीं पीछे छूट गया, और बोझ आगे बढ़ गया।
अब तो लगता है, ये रिश्ता निभाना खुद से धोखा है,
जो दिल में था कभी, अब बस आदतों में रुका है।
तस्वीरें अब मुस्कुराती नहीं,
बस आंखें नम कर जाती हैं।
तेरी यादें अब दवा नहीं,
एक बीमारी बन गई हैं।💔
हर कोना चिल्लाता है तेरे होने की,
पर तू अब कहीं नहीं।
तेरी यादें अब मेरी नींद चुराती हैं,
और आंखों में आंसुओं की बारिश लाती हैं।
जिस जगह बैठते थे साथ,💔
वहां अब सन्नाटा रहता है हर रात।
हर याद अब तलवार बन गई है,
जो दिल में हर रोज़ उतरती है।
अलमारी में रखी तेरी चीज़ें अब चीखती हैं,
और हर पल तेरी कमी बताती हैं।
जो पल हँसते हुए बीते थे,
अब रोने की वजह बन गए हैं।
हर याद के साथ एक टीस जुड़ी है,
जैसे दिल में कोई कील गड़ी है।
अब यादें नहीं, ज़ख्म हैं,
जो हर रात दर्द का मरहम मांगते हैं।
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