क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि आंकड़ों, घटनाओं और रिकॉर्ड्स की कहानी है। समय के साथ इसमें टेक्नोलॉजी का जो समावेश हुआ, उसने खेल को और अधिक निष्पक्ष और रोमांचक बना दिया।
पर क्या आप जानते हैं कि तीसरे अंपायर द्वारा आउट दिए जाने वाले पहले खिलाड़ी कौन थे?
इस सवाल का जवाब देने से पहले, ज़रा क्रिकेट की तकनीकी क्रांति की शुरुआत को समझते हैं—कहाँ से और कैसे थर्ड अंपायर (Third Umpire) की भूमिका क्रिकेट में आई?
क्रिकेट में थर्ड अंपायर की शुरुआत 1992 में हुई। इससे पहले हर निर्णय सिर्फ दो ऑन-फील्ड अंपायर्स के भरोसे लिया जाता था।
लेकिन जैसे ही टीवी कैमरे और स्लो-मोशन रिप्ले ने अपनी जगह बनाई, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने रन आउट और स्टंपिंग जैसे निर्णयों के लिए तीसरे अंपायर को शामिल करने का फैसला लिया।
उद्देश्य था — निर्णयों में पारदर्शिता और सटीकता।
यह ऐतिहासिक क्षण आया था 14 नवम्बर 1992 को, डरबन में, भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच चल रहे टेस्ट मैच में।
सचिन नॉन-स्ट्राइकर एंड से दौड़े और क्रिसल (fielder) ने डायरेक्ट हिट कर दी। मामला बेहद क्लोज़ था। फील्ड अंपायर Cyril Mitchley ने निर्णय थर्ड अंपायर को भेजा, जो उस समय एक नई व्यवस्था थी।
टीवी रिप्ले से यह स्पष्ट हुआ कि सचिन का बैट लाइन से पीछे था — और उन्हें रन आउट करार दिया गया।
यह क्रिकेट इतिहास में पहली बार था जब किसी खिलाड़ी को टीवी अंपायर के ज़रिए आउट दिया गया।
थर्ड अंपायर का रोल शुरू में सिर्फ रन आउट और स्टंपिंग तक सीमित था। लेकिन 2008 में, DRS (Decision Review System) के आने के बाद, थर्ड अंपायर को LBW जैसे निर्णयों के लिए भी ज़िम्मेदार बनाया गया।
पहला LBW रिव्यू जो थर्ड अंपायर ने overturn किया, वो हुआ था:
पहला LBW आउट जो थर्ड अंपायर ने दिया, वो हुआ:
खिलाड़ी: शिवनारायण चंद्रपॉल (Shivnarine Chanderpaul)
मैच: 2009 Champions Trophy, भारत बनाम वेस्टइंडीज
इसने क्रिकेट में डेटा, hawk-eye, और UltraEdge जैसे उपकरणों की भूमिका को और मजबूत किया।
क्रिकेट का पहला दर्ज टेस्ट मैच 15 मार्च 1877 को ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच खेला गया था।
उस मैच के अंपायर्स थे:
यह दोनों ही खिलाड़ी नहीं, pure umpires थे। उस दौर में मैच रेफरी, third umpire या DRS जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी।
इसलिए उनका निर्णय अंतिम होता था — चाहे वो गलत हो या सही।
आज से तुलना करें, तो 150+ साल पहले अंपायरिंग पूरी तरह अनुभव और इंसान की नजर पर आधारित थी।
किसी भी मैच में पहले बल्लेबाज़ी कौन करेगा, ये निर्णय टॉस (Toss) से होता है।
कप्तान यह तय करता है कि पहले बल्लेबाज़ी करेगा या गेंदबाज़ी, यह देख कर:
Fast bowling की दुनिया में Shoaib Akhtar यानी Rawalpindi Express एक ऐसा नाम है जो तेज़ी का पर्याय बन गया।
लेकिन जब उनके करियर की शुरुआत हुई, तो उन्हें “पहले एक्सप्रेस” या speed demon कहा जाता था क्योंकि वो पाकिस्तान की टीम में first true express pacer थे जो 150+ km/h की स्पीड से नियमित गेंद डालते थे।
उनका fastest ball,161.3 km/h, अभी भी वर्ल्ड रिकॉर्ड है, जो उन्होंने 2003 वर्ल्ड कप में इंग्लैंड के खिलाफ डाला था।
“Quarter Miler” शब्द का प्रयोग एथलेटिक्स में उन धावकों के लिए होता है जो 400 मीटर दौड़ में विशेषज्ञ होते हैं।
क्रिकेट में भी इसका अनौपचारिक रूप से इस्तेमाल होता है:
उदाहरण के तौर पर Ravindra Jadeja और Ben Stokes को quarter miler जैसे attributes वाला fielder माना जाता है।
ये उपलब्धि बेहद दुर्लभ है, और इसे हासिल किया है ग्लेन मैकग्रा (Glenn McGrath) ने।
ग्लेन मैकग्रा ने ना सिर्फ शानदार करियर खत्म किया, बल्कि ये भी दिखा दिया कि एक खिलाड़ी आखिरी बॉल तक अपना बेस्ट दे सकता है।
ये सवाल थोड़ा tricky होता है क्योंकि अक्सर लोग इसे अंपायर से जोड़ते हैं।
असल में, ये एक rare feat है जिसे बहुत ही कम गेंदबाज़ हासिल कर पाए हैं।
एक प्रसिद्ध उदाहरण है:
आज के ज़माने में भी यह उपलब्धि हासिल करना बेहद मुश्किल है।
जब सचिन तेंदुलकर को 1992 में तीसरे अंपायर द्वारा रन आउट दिया गया, तो क्रिकेट एक नए युग में प्रवेश कर गया।
आज की तारीख में DRS, UltraEdge, Ball Tracking, Snickometer जैसे टेक्नोलॉजी क्रिकेट का हिस्सा बन चुके हैं।
लेकिन इस बदलाव की शुरुआत हुई थी:
अगर आप ऐसे और क्रिकेट इतिहास से जुड़े फैक्ट्स पढ़ना चाहते हैं, तो इस आर्टिकल को बुकमार्क करें और शेयर करना न भूलें।
Be the first to post comment!